विषय.. हिंदी मुहावरे बडे बावरे
विधा.. लघुकथा
दिनांक..27-7-21
मुहावरे से बनी लघुकथा..
जब मैं रीमा से मिली उसके घर की हालत#उधड़े स्वैटर जैसी थी।वो अपनी माँ की#आँखो का तारा थी।पर अपनी सासू से उसका#छत्तीस का आक़डा था।उसे अपनी सासू की बाते#आलपिन की तरह चुभती मगर फिर भी वो चुप रहकर उससे#आँखे चुराती रहती। माँ रीमा की#आँखो में नौ-नौआँसू देख दुखी हो जाती। रीमा को वो#काठ का उल्लू बनने से रोकती।फिर भी रीमा चुपचाप #आँखे गीली किये रहती और भीतर ही भीतर#गीली लकड़ी की तरह #सुलगती रहती।
स्वरचित
रीतूगुलाटी. ऋतंभरा
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