Tuesday, August 3, 2021

फूल चंद्र विश्‍वकर्मा_ हिन्‍दी मुहावरे बडे़ बावरे

 साहित्य पोथी मंच

दिनांक २६-७-२०२१

विषय- हिंदी मुहावरे, बड़े बावरे

विधा  कविता


हिन्दी मुहावरों की कुछ पूछो न बात। 

ये देते भाषा को चमत्कारिक सौगात।। 

कभी कान खींचो, कभी कान खाओ। 

कभी उल्लू सीधा कभी उल्लू बनाओ।। 

दुखी देख कुछ नौ दो ग्यारह हो जाते। 

कुछ तीन का तेरह करके दिखाते।। 

कभी चलते वे आँख में आँख डाले।

 कभी लाल पीली कर सबको डराते।। 

अब आँख का पानी मर सा गया है। 

वह आँखें बिछाए ठहर सा गया है।। 

कोई बात में अंगारे बरसाने लगा है। 

कोई कोई अंगारों पे चलने लगा है।। 

नहीं लाज आती शरम बेंच खाई। 

नेता  यहाँ  रोज खाते मलाई।। 

कभी आटे डाल का भाव मालूम होता। 

कंगाली में केवल आटा गीला होता।। 

मुहावरों की भाषा मुहावरों का खेल। 

कठिन है निकालना बालू से तेल।। 

हिंदी के मुहावरे बड़े बावरे हैं। 

पथ मै बिछाते पलक पाँवडे हैं।। 


फूल चंद्र विश्वकर्मा

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