मुहावरा कवित्त
"अढाई चांवल की खिचड़ी पकाई"
अपने "पांव खुद कुल्हाड़ी चलाई"
"अपना सा मुंह " लेकर भैय्या
महामाई की जै मनाई।
" टेढी उंगली से घी निकालना "
बन गया जब " टेढ़ी खीर "
लल्लू ये कैसै भूल गये तुम
" बार बार नही लगता निशाने पे तीर "
"आटे-दाल का भाव समझ गए "
"लौट के बुदधु घर को गए "
" एक एक ग्यारह बताने वाले "
आज खुद " नौ दो ग्यारह हो गए "
" एक हांथ से ताली बज न पाई "
" अपनी ऐसी - तैसी कराई "
" काठ की हांडी फिर चढ न पाई "
कहने लगे. ". भैय्या राम दुहाई. "
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