# सादर मंच को समर्पित
# साहित्य पोथी - साहित्य की बहती धारा
# दिन - मंगलवार
# दिनांक 27/07/2021
# विषय - हिंदी मुहावरे बड़े ही बावरे
# विधा - सजल
# तुकांत - आव
# पदांत - रे
हिंदी मुहावरे बड़े ही बावरे
इन पर खेलें आओ दाव रे
ये भी हमारी इक विद्या है
होता इनमें हर सुलझाव रे
आती है मुस्कान कभी तो
आए सुनकर कभी ताव रे
वैसे तो ये होते औषधि
किंतु देते कभी घाव रे
ये तो सारे सेर पसेरी
इनको समझो नहीं पाव रे
मिलते हैं नि :शुल्क हमें तो
फिर भी इनका ऊंचा भाव रे
इनको जो पतवार बनाले
डूबे उसकी नहीं नाव रे
प्रसिद्धि गुस्ताख वो पाए
जिसको होता इनका चाव रे
स्वरचित मौलिक
गुस्ताख हिन्दुस्तानी
( बलजीत सिंह सारसर )
दिल्ली
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