Thursday, August 26, 2021

दर्द पिता का_भुनेश्‍वरी साहू

     दर्द पिता का.....

 बेटा तेरा उंगली पकड़ 

तुझे राह दिखाया है

अपनी कमाई का पाई पाई 

तुझपर लुटाया है


कल का सोचकर ना जाने क्युं

खुद ही घुटा हूं समाज में

छह बेटियों को किनारा किया

 बस एक तेरे ही चाह में


तेरे लिए मंदिर मस्जिद गुरुद्वारे

हर जगह दरवाजा खटखटाया था

तुझे पाने को कितनी जगह 

मन्नत का धागा बंधवाया था


बेटा तरक्की की सीढ़ी पर 

चढ़ गया  तू आज

मुझको और औरों को भी 

तुझ पर बड़ा है नाज


अब तू भी करने जा रहा 

नई जिंदगी की शुरुआत

उससे पहले कुछ कहना है

 सुन लो मेरी बात


बचपन में तेरी बहनें

रखती थी तेरा खूब ख्याल

अपनी खुशियों से वंचित थी 

पर किया नहीं कभी एक सवाल


जब भी आयेंगी ससुराल से

मायका उनका संवार देना

मै जो ना दे सका उन्हें

मेरे हिस्से का वो प्यार देना


कुछ ना दे सको तो 

चंद मीठे बोल बोल देना

बेटियां संस्कारी है मेरी 

खुशियों के रंग घोल देना

Saturday, August 21, 2021

अहा धरित्रि ! _पद्म मुख पंडा

 अहा धरित्रि !

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मंद मंद बह रहा समीरण बाग़, खेत,खलिहान में   !

यह मलयानिल ,स्निग्ध, सुगंधित, विचरे सकल जहान में! 

आर्तनाद कर रही, मनुजता, विकल हो

रहा नभ है।

वसुंधरा के अश्रु बहाते देख, मेरु हतप्रभ है।

हिन्द महा सागर में उठता ज्वार, कह रहा,

सबसे ,

करो नया प्रारम्भ, प्रयत्न, न भूल हो सके

अब से।

संप्रभुता पर आंच न आवे,भारत वर्ष, सफल हो ।

हर प्रदेश, हर प्रांत,शान्ति के लिए, नित्य

 अटल हो।

शत्रु देश के साथ, करें व्यवहार, सजग हो

नित ही।

ध्यान रहे, विस्मृत ना हो, निज राष्ट्र का हित ही।

है  मानवता,सकल जगत को, यही निवेदन

करती।

सदा प्रेम बंधुत्व भाव से, भरी रहे यह धरती।।

***

स्वरचित एवम् मौलिक

आवृत्ति पद्म मुख पंडा

ग्राम महा पल्ली पोस्ट लोइंग  जिला रायगढ़ छ ग

Monday, August 16, 2021

हमर छत्‍तीसगढ़ हमर गोठ: अशोक शर्मा_बुंद गिरय नही पानी

हमर छत्‍तीसगढ़ हमर गोठ: अशोक शर्मा_बुंद गिरय नही पानी:  साहित्य संगम संस्थान छत्तीसगढ़ इकाई दिनाँक:25-7-21 विषयः स्वतंत्र विधाः छत्तीसगढ़ी कविता बुंद गिरय नही पानी  सुख्खा बादर भर आथे।1 दाँत निपोरे...

Monday, August 9, 2021

हाईस्‍कुल का रिजल्‍ट_सुनील साहू

         


 #हाईस्कूल_का_रिजल्ट_तो_हमारे_जमाने_में_ही_आता_था...😂😂😂😂😂😂


रिजल्ट तो हमारे जमाने में आते थे, जब पूरे बोर्ड का रिजल्ट 17 ℅ हो, और उसमें भी आप ने वैतरणी तर ली हो  (डिवीजन मायने नहीं, परसेंटेज कौन पूछे) तो पूरे कुनबे का सीना चौड़ा हो जाता था। 


दसवीं का बोर्ड...बचपन से ही इसके नाम से ऐसा डराया जाता था कि आधे तो वहाँ पहुँचने तक ही पढ़ाई से सन्यास ले लेते थे।  जो हिम्मत करके पहुँचते, उनकी हिम्मत गुरुजन और परिजन पूरे साल ये कहकर बढ़ाते,"अब पता चलेगा बेटा, कितने होशियार हो, नवीं तक तो गधे भी पास हो जाते हैं" !!


रही-सही कसर हाईस्कूल में पंचवर्षीय योजना बना चुके साथी पूरी कर देते..." भाई, खाली पढ़ने से कुछ नहीं होगा, इसे पास करना हर किसी के लक में नहीं होता, हमें ही देख लो... 


और फिर , जब रिजल्ट का दिन आता। ऑनलाइन का जमाना तो था नहीं,सो एक दिन पहले ही शहर के दो- तीन हीरो (ये अक्सर दो पंच वर्षीय योजना वाले होते थे) अपनी हीरो स्प्लेंडर या यामहा में शहर चले जाते। फिर आधी रात को आवाज सुनाई देती..."रिजल्ट-रिजल्ट"


पूरा का पूरा मुहल्ला उन पर टूट पड़ता। रिजल्ट वाले #अखबार को कमर में खोंसकर उनमें से एक किसी ऊँची जगह पर चढ़ जाता। फिर वहीं से नम्बर पूछा जाता और रिजल्ट सुनाया जाता...पाँच हजार एक सौ तिरासी ...फेल, चौरासी..फेल, पिचासी..फेल, छियासी..सप्लीमेंट्री !!

कोई मुरव्वत नहीं..पूरे मुहल्ले के सामने बेइज्जती।


रिजल्ट दिखाने की फीस भी डिवीजन से तय होती थी,लेकिन फेल होने वालों के लिए ये सेवा पूर्णतया निशुल्क होती।


जो पास हो जाता, उसे ऊपर जाकर अपना नम्बर देखने की अनुमति होती। टोर्च की लाइट में प्रवेश-पत्र से मिलाकर नम्बर पक्का किया जाता, और फिर 10, 20 या 50 रुपये का पेमेंट कर पिता-पुत्र एवरेस्ट शिखर आरोहण करने के गर्व के साथ नीचे उतरते।


जिनका नम्बर अखबार में नहीं होता उनके परिजन अपने बच्चे को कुछ ऐसे ढाँढस बँधाते... अरे, कुम्भ का मेला जो क्या है, जो बारह साल में आएगा, अगले साल फिर दे देना एग्जाम...


पूरे मोहल्ले में रतजगा होता।चाय के दौर के साथ चर्चाएं चलती, अरे ... फलाने के लड़के ने तो पहली बार में ही ...

     

आजकल बच्चों के मार्क्स भी तो #फारेनहाइट में आते हैं।

99.2, 98.6, 98.8.......


और हमारे जमाने में मार्क्स #सेंटीग्रेड में आते थे....37.1, 38.5, 39


हाँ यदि किसी के मार्क्स 50 या उसके ऊपर आ जाते तो लोगों की खुसर -फुसर .....

नकल की होगी ,मेहनत से कहाँ इत्ते मार्क्स आते हैं।

वैसे भी इत्ता पढ़ते तो कभी देखा नहीं । (भले ही बच्चे ने रात रात जगकर आँखें फोड़ी हों)


सच में, रिजल्ट तो हमारे जमाने में ही आता था।


😃😀🤪😝😂

Sunday, August 8, 2021

प्रांजली काव्या (ममता यादव)_ देश भक्ति गीत

 साहित्य की बहती धारा समागम

चित्र अभिव्यक्ति प्रतियोगिता 

8 .  8 .  2021


है तिरंगा शान देश की 

तिरंगे को नमन हमारा ह


हम भारत के नन्हे बच्चे

हमें देश जान से प्यारा है

विश्व शिरोमणि सरताज़

ये भारत देश हमारा है।


ये आजादी की दौलत

हमने बलिदानों से पाई है

लहू की नदियाँ बही थी

तब आजादी आई है।


 यही तिलक का नारा है

आजादी पे हक हमारा है।

                                         हम भारत के नन्हे बच्चे

                                         हमें देश जान से प्यारा है

बैरी की ललकारों पे हम

सिंह बनकर दहाडेंगे

सरहद में यदि घुस आऐ

तो फिर चुन - चुनकर मारेंगे


बैरी कोई आंख दिखाऐ

ये हमको नही गंवारा है।

                                       हम भारत के नन्हे बच्चे

                                        हमें देश जान से प्यारा है।

मां भारती का आंचल कोई

छूने कभी न पाऐगा

हमसे टकराकर बैरी

चूर-चूर हो जायेगा।


ये ही शपथ हमारी है

और यही कर्त्तव्य हमारा है।

                                         हम भारत के नन्हे बच्चे

                                          हमें देश जान से प्यारा है।


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स्व रचित मौलिक सर्वाधिकार सुरक्षित

लेखिका - ममता यादव (प्रान्जली काव्य ब्लॉग लिंक)

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Mamta.yadav22755@gmail.com 


सुमन अग्रवाल_ देशभक्ति गीत

                     

 नमन मंच

साहित्य की बदलती धारा

देशभक्ति गीत


शान से लहराता तिरंगा, वीरों का बलिदान।

आज़ादी का जश्न मनाएँ, भारत देश महान है।


चल पड़े प्रगति पथ पर अब नही देखेंगे मुड़कर,

ये भारत के वीर जवान, तर्पण उनके प्राण हैं।


शत शत नमन उन्हें रखते हमको जो महफूज़ हैं,

सुभाष, भगत, सुखदेव हुए देश के लिए कुर्बान है।


राष्ट्रप्रेमी जन जाग्रत हों, राष्ट्रगीत मिलकर गाएं,

केसरिया, सफेद, हरा तिरंगा भारत की शान हैं।


आजादी की कीमत हम कभी चुका नही पायेंगे,

सबकी हुई हैं आँखें नम शहीदों का गुणगान हैं।


ये अपना देश है रंगीला, इसकी शान निराली है

देश को आजादी मिली, ये वीरों का सम्मान है।


देश के नाम पैगाम भेजते, हम सब एक हो जाए,

अपना देश है कितना प्यारा बढ़े देश का मान हैं।


कितना अदभुत सुंदर प्यारा, भारत देश ये मेरा है,

जन्म लिया इस मातृभूमि में यही मेरी पहचान है।


15 अगस्त 1947 को देश को आजादी मिली,

भारत की आजादी हमारे देश का स्वाभिमान है।


-सुमन अग्रवाल "सागरिका"

        आगरा

मधुकर वनमाली_बच्‍चों का देशप्रेम

                    


नमन मंच

#साहित्य_की_बहती_धारा

देशभक्ति बाल गीत

दिनांक ८/८/२१


आज तिरंगा फहरा दो

बड़े अनोखे तीन रंग जो

आज क्षितिज में लहरा लो

छूने को आतुर यह नभ को

आज तिरंगा फहरा दो।

लाल किले की प्राचीरों से

आती जो आवाज सुनो

जण गण मन हीं अधिनायक अब

जागो अपना राज चुनो

वनमाली कुछ शोभा कर दो

फूल जरा कुछ बिखरा दो।

आज तिरंगा फहरा दो।

वीरों ने बलिदान दिया जब

आजादी की रुत आयी

लेकिन रहना है चौकन्ना

दुश्मन अपने हरजाई

रक्षा करनी होगी देश की

यह संकल्प भी दुहरा दो।

आज तिरंगा फहरा दो।

बर्फीले पर्वत पर देखो

अपनी जान लुटाते जो

सैनिक जो कुर्बान हुए हैं

आंखें नम कर जाते वो

भाल हिमालय नहीं झुकेगा

दुनिया को यह समझा दो।

आज तिरंगा फहरा दो।

मधुकर वनमाली

मुजफ्फरपुर बिहार

स्वरचित एवं मौलिक

madriff13@gmail.com